Lekhika Ranchi

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आचार्य चतुसेन शास्त्री--वैशाली की नगरबधू-



140. शुभ दृष्टि : वैशाली की नगरवधू

“ तो हमें कल ही उल्काचेल चल देना चाहिए। ”-सिंह ने कहा ।

“ निश्चय , क्योंकि हमें सम्पूर्ण गंगातट का सैनिक दृष्टि से निरीक्षण करना है, फिर मिही के सब दुर्गों को एक बार देख डालना है । हम ग्यारहों नायक चलेंगे, तभी ठीक होगा मित्र सिंह! ”गान्धार काप्यक ने कहा ।

“ परन्तु मित्र काप्यक , मिही का ही तट हमारे अधीन है। दूसरे तट से हमारी नावों के प्रयोगों को शत्रु के गुप्तचर देख सकते हैं । ”

“ यह तो असम्भव नहीं है । ”

“ तब क्यों न मर्कट - ह्रद सरोवर में रणतरी के प्रयोग किए जाएं ? ”

“ यह अधिक अच्छा होगा , वहीं पर हम रणतरियों का परीक्षण, सैनिकों का शिक्षण और नाविकों का संगठन कर डालेंगे और वहीं से आवश्यकता होने पर मिही - तट पर उन्हें भेजना प्रारम्भ कर देंगे। परन्तु हमें अधिक- से - अधिक लौहशिल्पियों को एकत्र करना चाहिए । ”

“ जो हो , हमें सूर्योदय से प्रथम ही उल्काचेल चल देना चाहिए । ”

“ तो मित्र काप्यक , तुम साथ के लिए थोड़े- से चुने हुए गान्धार सेनानी ले लो । अच्छा है, राह- घाट वे देख लेंगे। यदि हम एक पहर रात्रि रहे चल दें , तो मार्ग के शिविरों को देखते -भालते हम दो दण्ड दिन चढ़े तक उल्काचेल पहुंच जाएंगे । वहां के घाट -रक्षक अभीति को मैंने सन्देश भेज दिया है । वह हमारा स्वागत करने को तैयार रहेगा । ”

काप्यक ने कहा - “ फिर ऐसा ही हो ! ”

नदी - तट पर धीरे - धीरे घूमते हुए सिंह और काप्यक गान्धार में ये बातें हुईं और दूसरे दिन वे मध्याह्न तक उल्काचेल जा पहुंचे। चुने हुए पचास गान्धार अश्वारोही उनके साथ थे।

उपनायक अभीति ने आगे बढ़कर सिंह और उपनायक काप्यक का सैनिक अभिवादन किया तथा गान्धार सैनिकों का हार्दिक स्वागत करते हुए कहा - “ मैं उल्काचेल में आपका और आपके मित्रों का स्वागत करता हूं । मेरे उपनायक अशोक आपको यहां सेना व्यवस्था का सम्पूर्ण विवरण बताएंगे । परन्तु मैं चाहता हूं कि मुख्य स्थान मैं आपको दिखा दूं । मैंने अपने और शत्रु के दुर्ग का जो मानचित्र तैयार किया है, वह यह है; इससे आप सब बातें जान लेंगे। इसमें यह भी लिख दिया है कि कहां हमारी कितनी सेना है। ”

“ यह बड़े काम की वस्तु होगी नायक! ”–सिंह ने कहा।

अभीति नायक बोले - “ आपकी आज्ञानुसार दक्षिण सेना के बहुत से नायक, उपनायक , सेनानी भी उल्काचेल आ पहुंचे हैं । आप पहले भोजन करके थोड़ा विश्राम कर लीजिए, फिर उनसे बातचीत करना ठीक होगा । ”

“ ऐसा ही हो , नायक ! सिंह ने मानचित्र पर ध्यान करते हुए कहा ।

फिर सब लोगों ने स्नान - भोजन कर थोड़ा विश्राम किया । पहर दिन रह गया था , जब सिंह ने दक्षिण सैन्य के सेनानियों में से , एक - एक को बुलाकर आदेश देने प्रारम्भ किए । सिंह ने उनके सैन्यबल के सम्बन्ध में सारी बातें पूछी और एक ताल - पत्र पर लिखते गए । सूर्यास्त तक यह काम समाप्त हुआ ।

स्वच्छ चांदनी रात थी । नायक अभीति ने कहा - “ इस समय गंगा - तट के कितने ही नव - निर्मित दुर्गों का परीक्षण किया जा सकता है । यदि विश्राम की इच्छा न हो तो मैं नाव मंगाऊं । ”

सिंह ने कहा- “ विश्राम की कोई बात नहीं है। नायक , तुम शीघ्र नाव तैयार कराओ। ”

नायक अभीति, सिंह और काप्यक तीनों आदमी नाव में जा बैठे । तीर -तीर नाव चलने लगी। सामने गंगा के उस पार पाटलिग्राम में मागध शिविर पड़ा था । उसमें जलती हुई आग का प्रकाश मीलों तक फैला दीख रहा था । नाव धीरे - धीरे गंगा -मिही -संगम पर दिधिवारा की ओर जा रही थी । नाविक सब सावधान और अपने कार्य में दक्ष थे। गंगा में व्यापारिक बड़ी - छोटी नावें और माल से भरी नावें तैर रही थीं । किसी-किसी नाव में दीपक का क्षीणप्रकाश भी प्रकट हो रहा था । गंगा-किनारे के सब दुर्गों में पूर्ण निस्तब्धता थी । न प्रकाश था , न शब्द । अभीति की इस सम्बन्ध में कड़ी आज्ञा थी । दिधिवारा तक कुल पांच दुर्ग वज्जियों के थे। सेनानायकों ने सभी का निरीक्षण किया । नाव को घाट तक लगते देखते ही प्रहरी पुकारकर संकेत करता । नाव पर से नायक संकेत करता, प्रहरी तत्काल दुर्गाध्यक्ष को सूचना देता और ये नाविक चुपचाप नाव से उतरकर दुर्ग का निरीक्षण कर आते तथा अध्यक्ष को आवश्यक आदेश दे आते। घाट से दुर्ग तक के मार्ग गुप्त और घूम - घुमौअल बनाए गए थे। अपरिचित व्यक्ति का वहां पहुंचना शक्य न था । सैनिक नावें इस प्रकार छिपाकर रखी थीं कि उस पार से तथा इस पार से भी उन्हें देख पाना शक्य न था । विशाल मर्कट - ह्रद को एक छोटी - सी टेढ़ी नहर द्वारा नदी से मिला दिया गया था । आवश्यकता पड़ने पर सब नावें सैनिकों सहित क्षण भर में गंगा की बड़ी धारा में पहुंच सकती थीं । यद्यपि यह निरीक्षण बिना सूचना के हो रहा था , परन्तु प्रत्येक प्रहरी सावधान एवं सजग था ।

पहर रात गए सेनानियों की नौका दिधिवारा के दुर्ग में जा पहुंची। यह औरों से बड़ा था । यहां की व्यवस्था भी उत्तम थी । दोनों नवीन नायक सैनिकों से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित कर रहे थे।

पौ फट रही थी , जब ये सेनानी उल्काचेल पहंचे। पीछे लौटकर सिंह ने कहा नायक अभीति , मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूं मित्र, तुमने यथेष्ट व्यवस्था की है । ”

नायक ने हंसकर सेनापति का अभिवादन किया । इसके बाद सबने विश्राम किया । दिन भर जयराज के चर शत्रु - सेना का संवाद लाते रहे। उससे विदित हो गया कि बिम्बसार अभी सेनापति भद्रिक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसलिए मगध -सम्राट् अभी युद्ध प्रारम्भ करने का निर्णय नहीं कर पाए हैं ।

रात को फिर तीनों सेनानी गंगा के नीचेमिही और गंगा के संगम पर स्थित दुर्गों को देखने चले । यह एक रात में समाप्त नहीं हो सकता था । वे दिन - भर किसी दुर्ग में विश्राम करते और रात में देखी बातों के संस्मरण लिखते । संध्या होने पर फिर आगे चलते । वे तीसरे दिन बागमती संगमतट पर के दुर्ग में पहुंचे। भटों की तत्परता और सतर्कता पर सेनानियों ने सन्तोष किया । उन्हें आवश्यक आदेश दिए और तक्षशिला की नई रणचातुरी सिखाने के लिए उन्हें उल्काचेल आने को कहा।

अभी महानदी के दुर्गों को देखना शेष था । एक दिन उल्काचेल में तरुण सेनानियों ने विश्राम किया तथा आवश्यक आदेश वैशाली और भिन्न -भिन्न केन्द्रों को भेजे ।

दूसरे दिन चन्द्रोदय के साथ ही काप्यक और सिंह ने मिही की ओर नाव छोड़ी । दिधिवारा के संगम से ऊपर धार तीव्र थी , इसलिए घूमकर नौका ले जानी पड़ी । मिही के पूर्वी तट पर हरी घास का मैदान था , जहां सहस्रों गायें चर रही थीं । बीच में आदमियों और पशुओं के लिए छोटी- छोटी कुटियां बनी थीं । वे लिच्छवी और अलिच्छवी दोनों थे ।

चार दिन में मिही के दुर्गों का निरीक्षण हुआ । उन्हें नायक शान्तनु और उसके आठ उपनायकों को सौंप दिया गया , जिससे वे नाविकों को नवीन कौशल सिखा सकें । यह करके दोनों मित्र फिर उल्काचेल चले आए। यहां से काप्यक तो कुछ नौ - सधार के लिए वैशाली चले गए और सिंह ने सेनानियों को नौ युद्ध के कुछ नवीन और गुप्त रहस्य सिखाए। आठ दिन में यह कार्य सम्पन्न हुआ ।

अब सिंह ने अपने सम्पूर्ण कार्य का विवरण महाबलाध्यक्ष सुमन के पास वैशाली लिख भेजा। बलाध्यक्ष पश्चिमी और पूर्वी सीमान्त पर नौ -युद्ध की नवीन पद्धति की परीक्षा की बात जानकर अति सन्तुष्ट हुए ।

अब सिंह ने अपना ध्यान दूसरी ओर किया । जयराज को उन्होंने लिखा कि चरों की संख्या बढ़ा दी जाए और सोन - तट और गंगा - तट पर शत्रु जो नई कार्रवाई कर रहा है , इसकी क्षण- क्षण की सूचना हमें मिलती जाए। सिंह ने यत्नपूर्वक यह भी जान लिया कि राजगृह और उसके मार्ग की रक्षा का क्या प्रबन्ध किया गया है। जयराज ने अनेक चर परिव्राजक, निगंठ , आजीवक , भिक्षु आदि वेशों में ; कुछ व्यापारी और ज्योतिषी बनाकर शत्रु की ओर भेज दिये । उन्होंने बताया कि चण्डभद्रिक बड़ी द्रुत गति से राजधानी के दुर्गों की मरम्मत करा रहे हैं ; तथा गंगा - तट से वहां तक उन्होंने उचित स्थानों पर नाकेबन्दियां कर रखी हैं । नालन्द, अम्बालिष्टिका की दो योजन भूमि में उसकी तैयारियां और भी अधिक थीं । अभिप्राय स्पष्ट था कि चतुर चाणाक्ष चण्डभद्रिक को भय था कि लिच्छवि कहीं राजगृह तक न दौड़ जाएं । सिंह सेनापति उल्काचेल लौट आए ।

चर सिंह के पास क्षण -क्षण में सूचना ला रहे थे और मगधराज की सम्पूर्ण गतिविधि का पता उन्हें लग रहा था । वे सूचनाओं के साथ - साथ अपनी योजनाएं भी सेनापति और गणपति के पास भेज रहे थे।

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